शकील अख्तर
रेल्वे भारत में एक संस्कृति है। इसके स्टेशनों पर मजदूरों, छात्रों, बेरोजगारों, बेघरों ने जाने कितने दिन और रात बिताए हैं। मगर अब प्राइवेट हो रहे हैं। जहां घुसना भी मुश्किल। इन रेलों से लाखों बच्चे पढ़ने जाते थे। लोग नौकरी करने, मजदूर, छोटे विक्रेता, लकड़हारे तक रियायती मासिक पासों पर सफर करते थे। मगर ट्रेनों का भी प्राइवेटाइजेशन कर दिया गया है। रेपिड रेल परिहवन का ही हिस्सा है। और यह इतिहास सड़कों से शुरू हुआ था।
अगर ये मेट्रो मोदी जी समय में चली होती तो क्या तूफान बरपाया जाता इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती! महानगरों में पब्लिक ट्रांसपोर्ट का चेहरा बदलने का पहला क्रान्तिकारी कदम। मेट्रो पर बहुत कम लिखा गया है। आज जो भक्त बिना रेपिडेक्स जिसका नाम अब नमो कर दिया गया है को देखे, बैठे, उसको महान काम बता रहे हैं उन्होंने शुरुआती दौर में मेट्रो को पूरी तरह असफल बता दिया था। मगर आज मेट्रो विश्व स्तर की ट्रांसपोर्ट प्रणाली है। इसके स्टेशन एक से बढ़कर एक खूबसूरत और विशाल हैं। एक मेट्रो को दूसरी मेट्रो से जोड़ने के इंटर लिंक का सिस्टम रोज सफर करने वाले यात्रियों के लिए बहुत सविधाजनक है और शुरू में तो इसके किराए भी कम रखे गए थे जो अब दो बार बढ़ाकर लगभग दोगुने हो गए हैं।
मेट्रो का जिक्र क्यों? इसलिए कि रेपिडेक्स इसकी ही अगली कड़ी है। प्रधानमंत्री ने इसके एक सेक्शन का उद्घाटन करते हुए कहा कि इसका शिलान्यास भी मैंने किया था और इसका उद्घाटन भी कर रहा हूं। और जब यह मेरठ तक साल डेढ़ साल में पूरी बन जाएगी तब भी इसका उद्घाटन मैं ही करुंगा। लोकसभा चुनाव तो छह महीने बाद ही हैं। मतलब फिर प्रधानमंत्री बन रहा हूं। अच्छी बात है। यह सोचने और कहने का अधिकार सबको है। मगर साथ ही वह जो यह कह रहे थे कि देश में विकास हुआ ही नहीं है तो कुछ बातें याद दिलाना जरूरी हैं। इसलिए कि मीडिया को जो लिखना हो लिखे। टीवी पर जो बोलना हो बोले, मगर जनता को सब पता है। बस वह कुछ कह नहीं पाती है। एक डर उसके मन में भी है।
राहुल के लगातार देशव्यापी दौरों से हिम्मत के साथ बोलने का असर हो रहा है। मगर मीडिया या तो उसे दिखाता नहीं है या उल्टा राहुल को ही ब्लेम (आरोप लगाना) करना शुरू कर देता है तो जनता के सामने सही तस्वीर नहीं आ पाती।
लेकिन सही बात है कि सच्चाई हमेशा छुपाई नहीं जा सकती। परिवर्तन आया है। कांग्रेस के हिमाचल और कर्नाटक जीतने के बाद पूरे देश में यह संदेश गया है कि मोदी को हराया जा सकता है। अभी तक तो माहौल यह बनाया जा रहा था कि मोदी जी जो कहें वह सही और उन्हें हराना तो संभव ही नहीं है। लेकिन मोदी के मैनेजमेंट और मीडिया का यह झूठ का पहाड़ ढहना शुरू हो गया है।
रेपिडेक्स पर वह पुराने अफसर जो शुरू से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र योजना बोर्ड (एनसीआरटीसी) से जुड़े रहे हैं, बताते हैं कि 1985 में राजीव गांधी ने दिल्ली पर जनसंख्या का दबाव कम करने के लिए राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) की प्लानिंग की थी। उसी के तहत एनसीआरटीसी बनाया गया था। इसी के तहत 8 रिजनल रेपिड ट्रांजिस्ट सिस्टम (आरआरटीएस) को 2009 में स्वीकृत किया गया था।
ऐसे समय में जब कोई 2014 से पहले की बात करने को तैयार नहीं हो क्योंकि यह कह दिया गया है कि देश आजाद ही 2014 में हुआ। और यह तो खुद प्रधानमंत्री मोदी ने कह दिया कि 2014 से पहले भारत में पैदा होना शर्म की बात होती थी तो आप किससे उम्मीद रखेंगे कि वह आपको बताए कि नींव कैसे भरी थी। पहली मंजिल खड़ी करना कितना मुश्किल काम था। फिर दूसरी मंजिल सोच समझ कर कि नींव कितना बोझा उठा लेगी। और जब दो मंजिलें बन गईं तो उस पर बरसाती बनाकर बैठकर कह रहे हैं कि क्या बनाया था? आज तक क्या हुआ? यह देखो ऊपर यह बरसाती हमने बनाई है!
यह ऐसा ही है जैसे पहले सिंचाई के लिए बड़े-बड़े तालाब बनाए गए मगर बनाने वालों के नाम कोई नहीं लेता मगर उसके किनारे बारहदरी बनाने वालों ने अपने नाम के पत्थर बड़े-बड़े लगवा लिए हैं तो लोग बारहदरी बनाने वालों को ही तालाब के निर्माता भी मान रहे हैं और बारहदरी, बरसाती भी क्या बिना बनाए भी बोल दो तो कोई क्या कर रहा है! दरभंगा बिहार में एम्स बनाया है कह ही दिया। मरीज ढूंढ रहा है। ढूंढता रहे। ऐसे ही यह भी कह दिया कि आईआईटी एम्स हमने बनाए हैं।
राजनीति का यह नया रूप है। सब कुछ हमने किया और दूसरे ने कुछ नहीं किया। लेकिन अगर दूसरे में कोई हमारे साथ आ जाए तो उसके वंश का गुणगान करने में भी कोई परेशानी नहीं है। साहिबाबाद में रेपिडेक्स का उद्घाटन करने के अगले दिन प्रधानमंत्री मोदी ग्वालियर पहुंचे। वहां सिंधिया परिवार की खूब तारीफ करने के बाद बोले कि माधवराव सिंधिया ने शताब्दी चलाई थी और उस के बाद कोई नई ट्रेन नहीं चली।
पहली बात तो यह कि देश की पहली शताब्दी उस नेता ने चलाई थी जिसने देश को नई शताब्दी में प्रवेश करने करने के लिए तैयार किया था। देश में संचार और कम्प्यूटर क्रान्ति के जनक राजीव गांधी। उन्होंने माधवराव सिंधिया को पहली बार मंत्री बनाया था। रेल राज्य मंत्री। शताब्दी राजीव गांधी की परिकल्पना थी। जैसे एनसीआरटीसी। लेकिन खैर कांग्रेस कभी इन बातों को लोगों तक नहीं पहुंचा पाई वह इस सामंतवादी मानसिकता से हमेशा ग्रस्त रही कि लोगों का काम है खुद जानें। हम क्यों किसी को बताएं? मत बताइए 2014 में इसीलिए हार गए। और बाद में रोते रहे कि हमको प्रचार करना नहीं आता है।
खैर, देश कांग्रेस और भाजपा तक ही सीमित नहीं है कि कांग्रेस बताए नहीं तो लोगों को मालूम नहीं हो और भाजपा बढ़ा-चढ़ाकर बताए तो लोग हमेशा के लिए विश्वास कर लें। लिखने-पढ़ने वाले बोलते रहेंगे। बताते रहेंगे। कांग्रेस को नहीं सुनना हो तो नहीं सुने भाजपा गलत साबित करना चाहे तो करे मगर लिखना बोलना कभी बंद नहीं होता है।
तो प्रधानमंत्री ने कहा कि शताब्दी चूंकि हमारे साथ आ गए ज्योतिरादित्य के पिता माधवराव ने चलाई थी तो उसके बाद कोई नई ट्रेन नहीं चली। मगर लालू जी की गरीब रथ, ममता बनर्जी की दुरंतो तो बहुत चर्चित और उपयोगी ट्रेनें रहीं। जो 1985 के बाद में चलीं। और संपूर्ण क्रांति, जन शताब्दी, डबल डेकर, हमसफर, तेजस कितने नाम गिनाएं!
और उससे पहले कहां से शुरू करें? फ्रंटियर मेल लोग देखने जाते थे। ऐसे ही डिलक्स। अभी कहीं बता रहे थे कि इनकी डायनिंग कार में डायनिंग टेबल होती थीं। जहां वेटर सर्व करते थे। आप बैठकर खा सकते थे तो एक भक्त मित्र लड़ने लगे कि हमने तो सुना नहीं। तो हमने यह और बता दिया कि पहले फर्स्ट क्लास काकूपा ऐसा होता था कि उसमें वाशरुम अटैच होता था तो यह सुनकर तो वह गश ही खा गए।
रेल्वे भारत में एक संस्कृति है। इसके स्टेशनों पर मजदूरों, छात्रों, बेरोजगारों, बेघरों ने जाने कितने दिन और रात बिताए हैं। मगर अब प्राइवेट हो रहे हैं। जहां घुसना भी मुश्किल। इन रेलों से लाखों बच्चे पढ़ने जाते थे। लोग नौकरी करने, मजदूर, छोटे विक्रेता, लकड़हारे तक रियायती मासिक पासों पर सफर करते थे। मगर ट्रेनों का भी प्राइवेटाइजेशन कर दिया गया है।
रेपिड रेल परिहवन का ही हिस्सा है। और यह इतिहास सड़कों से शुरू हुआ था। इसको मिटाया नहीं जा सकता। अशोक के सड़कों के दोनों ओर वृक्ष लगाने से लेकर शेरशाह सूरी तक के जीटी रोड बनाने अंग्रेजों के रेल चलाने 170 साल पहले तक किस-किस का इतिहास मिटाएंगे। ट्रेन की अगर बात हो तो पहली राजधानी 1969 में इन्दिरा गांधी ने चलाई थी। देश की पहली फास्ट ट्रेन। मगर साथ में यह भी याद रखिए कि पैसेन्जर और जनता ट्रेनें भी वैसी ही चलती रहीं। आम जनता की सुविधा के लिए।
सीधे ऊपर तीसरी मंजिल की बरसाती का महिमामंडन करने से पहली और दूसरी मंजिल का महत्व खत्म नहीं हो जाएगा। देश में नवनिर्माण की कहनी नेहरू ने लिखी थी। उसी को सबने आगे बढ़ाया है। किसी ने कम किसी ने ज्यादा मगर खामोशी से। मगर सेल्फ प्रचार न करने से काम का महत्व कम नहीं हो जाता। इतिहास हमेशा बताएगा कि हर प्रधानमंत्री ने ईंट दर ईंट जोड़ी है। अचानक ऊपर कुछ नहीं बन गया!
अब तो भाजपा के लोग भी कहने लगे है कि बातें करने से कुछ नहीं होता है। उमा भारती ने इकबाल का यह शेर बोल ही दिया कि-
इकबाल बड़ा उपदेशक है मन बातों से मोह लेता है
गुफ्तार का यह गाजी तो बना किरदार का गाजी बन न सका!
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)